संगीत सभी ललित कलाओं में सर्वश्रेष्ठ - Music Best of all Fine Arts -
सँगीत - Music
साधारण भाषा में गायन को ही संगीत कहा जाता है परंतु वास्तव में गायन , वादन, और नृत्य इन तीनों के समावेश को संगीत कहते है
ये तीनों कलाएं स्वतंत्र होते हुए भी एक दूसरे पर किसी ना किसी रूप में आश्रित है
'गीत' शब्द में 'सम्' शब्द लगाकर "संगीत" की उत्पत्ति होती है इसका अर्थ यह है कि अच्छा गीत जो कर्णप्रिय हो , लोगों का मनोरंजन कर सके !!
जब हम शब्द स्वर और लाइक के माध्यम से अपने हृदय के भावनाओं को प्रकट करते हैं तो उसे गायन कहा जाता है गायन वादन और नृत्य इन तीनों कलाओं के संबंध में यह कहा गया है कि गायन के अधीन वादन और वादन के अधीन नृत्य इसलिए गायन को प्रधान माना गया है ! ।।
संगीत सभी ललित कलाओं में सर्वश्रेष्ठ----------------
मानवीय भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति का साकार रूप ही कला हैं विकास के साथ-साथ मानव की कल्पना प्रकृति को सुन्दर रूप देने की चेस्टा करने लगी !!
उसकी इस चेस्टा को अधिक महत्वपूर्ण और सौंदर्यमई बनाने के लिए ललित कलाओं का जन्म हुआ तथा ये कलाएं निम्न रूप में प्रस्तुत हुई !!
1 - भवन निर्माण के रूप में वास्तु कला
2 - भावों को मूर्ति के रूप में व्यक्त करने पर मूर्तिकला
3 - प्रकृति के दृश्य को चित्र फलक पर उतारने पर चित्रकला
4 - शब्द तथा भाषा के माध्यम से भाव व्यक्त करने पर काव्य कला
5 - शब्द स्वरों के माध्यम से भाव व्यक्त करने पर
संगीत कला
यह सर्वविदित है कि सभी ललित कलाओं में संगीत सबसे प्राचीन कला है
जब मनुष्य ने भाषा नहीं सीखी थी तब भी किसी ना किसी रूप में संगीत था
आदिमानव भी अपने हृदय की उद्गार , खुशी को गुनगुना कर व्यक्त करता था ।।
जिस प्रकार चिड़ियों को चहचहाना बालक को रोना है स्वयं ही आ जाता है या स्वत: ही आ जाता है
उसी प्रकार मनुष्य को गुनगुनाना नाचना स्वत: ही आ जाता है , ऐसा माना गया है कि अन्य कलाओं का जन्म बाद में हुआ ।।
इन सभी ललित कला के लिए भौतिक साधनों तथा उपकरणों की आवश्यकता रहती है जैसे : - वास्तु कला में ईट , पत्थर हथौड़ा मिट्टी आदि !!
मुर्ति कला मे पत्थर के अलावा चुना , पलास्टर , छेनी, हथौडी, आदि
चित्र कला मे कागज , ब्रश , रंग , पेन्सिल आदि
काब्य तथा सँगीत के लिए नाद और शब्द आदि की आवश्यकता पड़ती है संगीत केवल नाद प्रधान है अतः संगीत का स्थान या जगह सभी ललित कलाओं में सर्वश्रेष्ठ या सबसे ऊपर है
यह कल आपने प्रभाव की व्यापकता , सूक्ष्ममता एवं महत्ता के कारण ललित कलाओं रूपी आकाश का ध्रुव तारा बनी हुई है
लौकिक व अलौकिक भौतिक तथा आध्यात्मिक आनंद प्राप्त करने तथा प्रदान करने की जितनी शक्ति संगीत में है उतनी किसी अन्य कलाओं में नहीं !!
संगीत सभी ललित कलाओं में सर्वश्रेष्ठ है इस संबंध में भगवान श्री कृष्ण द्वारा " वेदानाम् सामवेदोऽस्मि " तथा वृंदावन के रास में नृत्य एवं बांसुरी बजा कर इसकी महानता दिखाई गई है
आधुनिक कवि गुरु रविंद्र नाथ टैगोर ने तो यह भी कहा है कि जहां कविता ( काव्य ) में अभिव्यक्ति असमर्थ है वहां से संगीत की पहली सीढ़ी आरंभ होती है शुरू होती है
संगीत अपने सुख-दुख प्रेम आदि अनुभूतियों की स्वर , लय , ताल तथा मुद्राओं द्वारा श्रेष्ठतम अभिव्यक्ति है श्रेष्ठता से संपन्नता को कला कहा जाता है
इसलिए संगीत को " संगीत कला " के नाम से संबोधित किया जाता है
संगीत खुद काव्यमय है इसलिए इस में लीन हो जाने पर चित सदा भावमय रहता है संगीत के लोक से उज्जवल रश्मि निकलकर हमें उच्चतम लोक तक ले जाती है !!
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