गायक के गुण और दोष क्या होते हैं / What are the merits and demerits of the singer

 

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जो गायक उचित रूप से साधना करके रस भावों और कला को सुमिलत करके गायन करते हैं वह निश्चित ही लोगों का मन मोह लेते हैं और जो बिना रियाज के ऊटपटांग तरीके से गाते हैं उनको निरादर ही मिलता है। संगीत रतनाकर में शारंगदेव ने गायक के गुण और दोष इस तरह दिये हैं। 

गायक के गुण 

(1.) आवाज सुरीली अभ्यास के बिना राग स्वरूप बना सके।

(2.) रागों का पूर्ण ग्याता हो उसे राग-रागांग की जानकारी हो।

(3.) प्रचलित गायन शैलियों का ज्ञान रखता हो।

(4.) आलाप करने के ढंग जानता हो।

(5.)  मंद्र, मध्य और तार तीनों सप्तको में गमक ले सकता हो।

(6.) आवाज खुली हो।

(7.) ताल का पूर्ण गयान रखता हो।

(8.) एकाग्रचित हो और गाते समय परिश्रम ना करना पड़े।

(9.) संगीत शास्त्र का ग्याता हो।

(10.) जो संगीत अभ्यास में पूर्ण हो।

(11.) जिसको लय का पूर्ण गयान हो।

(12.) तन और मंन दोनो ही सुंदर हो।

(13.) गंभीर आवाज निकालने में कुशल हो।

(14.) निडर होकर गाने वाला हो।

(15.) राग और रस को धयान में रख कर गाने वाला हो।

(16.) गायन से श्रोताओ को मोहित करने वाला हो।

(17.) सभी दोषों से रहित हो।

(18.) गीत के शब्दों का शुद्ध उच्चारण और गाने में रंजकता हो।

(19.) गुरू परंपरा उच्च श्रेणी की हो।

शारंगदेव ने गुणों के अलावा गायक के अवगुणों पर भी प्रकाश डाला है जो निम्नलिखित प्रकार हैं।

गायक के अवगुण। 

(1.) दांत पीस कर गाने वाला। 

(2.)  जोर से और बे-रस गाता हो।

(3.) गाते समय सांस की जोर से आवाज करता हो।

(4.) डर डर कर गाता हो।

(5.) जो मूंह फाड़कर गाता हो।

(6.) जिसको आत्मविश्वास ना हो।

(7.) जो कांपती आवाज में गाता हो।

(8.) जो स्वरों को उचित स्थानों पर ना लगा सके।

(9.) जिसकी आवाज मधुर ना हो बल्कि कर्कश हो।

(10.) जिसको ताल का ज्ञान ना हो।

(11.) सिर ऊँचा करके या टेड़ा करके गाता हो।

(12.) हाथ पांव पटक कर गाता हो।

(13.) आखों को बंद करके गाता हो।

(14.) जो गायन में वर्जित स्वर भी लगाता हो।

(15.) जो गीत के शब्दों का गलत उच्चारण करता हो।

(16.) जिसकी आवाज ठीक स्थान पर ना लगती हो।

(17.) जो राग की शुद्धता पर ध्यान ना दे और रागों को मिश्र करके गाता हो।

(18.) समय और श्रोताओं का ध्यान ना करके लापरवाही से गाता हो।

(19.) जो नाक से स्वर निकालता हो।

(20.) जिसको शास्त्र का ज्ञान ना हो।

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