मानवता की खुली आंख के
सबसे सुंदर सपने राम
जिभ्या वाणी अर्थवती हो
गई लगी जब जपने राम
मात-पिता गुरु जन परिजन ने
अपने-अपने देखे थे
दुनिया भर ने दुनिया भर ने देखे
अपने अपने अपने राम
अपने-अपने अपने राम...
सूरदास के रसिक शिरोमणि
मीरा के नटवर ना
वाल्मीकि तुलसी कंबन के
अपने-अपने अपने राम...
हाथ अगर जुड़कर रहते हैं
तो प्रणाम बन जाते हैं
संकल्पो की पुण्य वेदी पर
सभी काम बन जाते हैं
अगर आत्मा रहे निरंतर
मन के मानस के संग में
तो पर पीड़ा पीने वाले
स्वयं राम बन जाते हैं
अपने-अपने अपने-अपने
अपने अपने अपने राम....
जब जब धीरे अंधेरे गहरे
हमने तुम्हें पुकारा राम
एक तुम्हारे होने भर से
जग भर में उजियारा राम....
धन दौलत की या ताकत की
जिन पर लंका है उनके
होंगे लाख सहारे अपना
केवल एक सहारा राम
अपने अपने अपने राम.....

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