कर्म करो पर ध्यान रहे पथ छूटे ना
इतनी देयों हवा गुब्बारा फूटे ना....
कर्म के गर्भ स्थल में
रहता हिट अनहित अपना
जग जाल विकट ग्रंथि है
सच कहो कहो चाहे सपना
सहज मय छूटे ना
इतनी देयों हवा गुब्बारा फूटे ना...
एक बार क्रोध भी करिए
पर बोध नष्ट ना होवे
स्वार्थ भी बुरा नहीं है
औरों को कष्ट ना होवे
जीव कोई रूठे ना
इतनी देयों हवा गुब्बारा फूटे ना..
बिन मोहन फेरी ना जाए
इस जगत करम की माला
पर मोह ना इतना करिए
दे जगा द्वेष की ज्वाला
निगाह तक रूठे ना
इतनी देयों हवा गुब्बारा फूट ना....
जब काम बीज सृष्टि का
न होवे अकामी कैसे
जल में कमल का जीवन
तुम जियो जगत में ऐसे
कामिनी लुटे ना
इतनी देयों हवा गुब्बारा फूट ना....
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