निर्बल के प्राण पुकार रहे जगदीश हरे जगदीश हरे लिरिक्स भजन: Nirbal ke pran pukar rahe jagdesh hare jagdesh hare lyrics

निर्बल के प्राण पुकार रहे

जगदीश हरे जगदीश हरे

श्वासों के स्वर झन्कार रहे

जगदीश हरे जगदीश हरे..


आकाश हिमालय सागर में

पृथ्वी पाताल चराचर में

यह मधुर बोल गूंजार रहे

जगदीश हरे जगदीश हरे..


जब दया दृष्टि हो जाती है

सुखी खेती हरियाती है

इस आप पर जन उच्चार रहे

जगदीश हरे जगदीश हरे..


सब दुखों की चिंता है ही नहीं

भय है विश्वास ना जाए कहीं

टूटे ना लगा ये तार रहे

जगदीश हरे जगदीश हरे..


तुम हो करुणा के धाम सदा

सेवक है तेरे द्वार खड़ा

बस इतना यह विचार रहे

जगदीश हरे जगदीश हरे..

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