लगा के आस मैं बैठा हूं एक जमाने से
मिलोगे कब मेरे भगवान किस बहाने से..
कभी मैंने सुना शबरी को बेर खा के मिले
कभी तो ये सुना केवट को भवन जाके मिले
कभी गणिका को मिले हो सुवा पडाने से
मिलोगे कब मेरे भगवान किस बहाने से..
कभी प्रार्थ के आप सारथी कहाय हो
कभी दशरथ के कभी नंद जी की जाये हो
मिले गजराज को पंकज कली चढ़ाने से
मिलोगे कब मेरे भगवान किस बहाने से....
कभी भूखे भी विदुर के घर मिले विदुरानी से
कभी प्रहलाद की रक्षा करी तूफानी से
कभी गोविंद को मिले छाछ के पिलाने से
मिलोगे कब मेरे भगवान किस बहाने से..
मिले हजार जनों को ना कुछ बिचारे हो
बताओ किस लिए हमको प्रभु बिसारे हो
मिलो मैं बावला हूं आपको ने पाने से
मिलोगे कब मेरे भगवान किसी बहाने से..

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